श्री क्षेत्र नासिक – सिंहस्थ कुंभमेला महापर्व
हरिद्वारे प्रयागे च धारा गोदावरीतटे ।।
सिंहस्थिते ज्ये सिंहर्के नासिके गौतमी तटे ।।1।।
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(स्कंद
पुराण)
हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन इन चार पवित्र क्षेत्रों में ही
अमृत की बुँदों के गिरने केकारण कुंभ पर्व मनाया जाता है, अन्यत्र नहीं।
नासिक ही पुराण प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र है। सिंह राशी में जब गुरू का
आगमन होता है, तब सिंहस्थ पर्व काल मनाया जाता है। इस सिंहस्थ पर्व काल में
तीर्थयात्रा, तीर्थ स्नान, दान, प्रायश्चित तथा पितृगणानिमित्त तीर्थ श्राद्ध
विधि, नारायण नागबली, त्रिपिंडी आदि धार्मिक विधि करने की प्राचीन परंपरा है। अतः
इस पर्व काल का सब भाविकोने लाभ उठाना चाहिए।
नासिकं च प्रयागं च नैमिषं पुष्करं तथा।।
पंचमं च गयाक्षेत्रं षष्ठं क्षेत्रं न विद्यते।।
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(ब्रम्हांड
पुराण)
नासिक, प्रयाग, नैमिष, पुष्कर और गया यहीं पाँच प्रमुख पावन तीर्थ
क्षेत्र हैं। इनके अलावा छटा तीर्थ क्षेत्र और कहीं भी नहीं। (नासिक, हरिद्वार,
प्रयाग तथा उज्जैन) इन चार क्षेत्रों में ही मनाया जाता है। श्री क्षेत्र नासिक
पंचवटी में गोदावरी दक्षिण वाहिनी है। सिंहस्थ पर्वकाल एक साल तक होता है। अनादी
काल से नासिक पंचवटी में सिंहस्थ पर्व मनाया जाता है। उस समय श्री गोदावरी के अति
पुण्यदायक स्नान तथा ध्वजापर्व का अवसर प्राप्त करने के लिए अखिल भारतवर्ष से
हजारो बैरागी, उदासी, निर्मोही, निर्वाणी, दिगंबर, खालसा, गुरूद्वारा, खाकी,
रामानुजी, दसनामी इ. साधु, संत, महंत, सत्पुरूष तथा भारत के कोने-कोने से असंख्य
भाविक श्रद्धावान, धार्मिकजन पूर्व प्रचलित रीतिरिवाजों के अनुसार स्नानदान का
महापुण्य का लाभ उठाते हैं। शाही जुलुसका यह नयनमनोहर दृश्य अपूर्वंहि ज्ञात होता
है।
बृहस्पति का सिंह राशी में जब तक निवास रहता है तब तक जगत के सर्व
तीर्थ, नदीयाँ, सागर, क्षेत्र, अरण्य, ऋषी, महर्षी, आश्रम, कुएं, जलाशय, पल्लव
इतनाही क्या इन्द्रादि तैतीस कोटी सर्व देवता भी एक वर्ष तक श्री गोदावरी के तीरपर
निवास तथा नित्य स्नान करते हैं। अतः दक्षिण वाहिनी गोदावरी के स्थानपर स्नान करने
से अश्वमेध यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त होता है।
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