Tuesday, March 22, 2016

होलिका दहन



होलिका दहन
गोधूलि युक्त प्रदोष वेला में होलिका दहन शास्त्रों के अनुसार रहेगा। इससे पहले साल 1954 में भी ऐसा ही योग बना था। तब भी प्रदोष व्यापिनी प्रतिपदा में ही होलिका दहन श्रेष्ठ माना गया था। जबकि 22 मार्च को पूर्णिमा प्रदोष व्यापिनी है, इसलिए इस बार 23 मार्च को होलिका दहन का श्रेष्ठ मुहूर्त है, क्योंकि इस दिन वृद्धि गामिनी पूर्णिमा है, जो भद्रामुक्त है।




होलिका दहन का पौराणिक महत्व

होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और एकता का प्रतीक है। होलिका दहन पर किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक कर सकते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था। उसने अपनी प्रजा को ईश्वर की जगह सिर्फ अपनी पूजा करने को कहा था, लेकिन प्रहलाद नाम का उसका पुत्र भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसने अपने पिता के आदेश के बावजूद भक्ति जारी रखी, जिसके लिये पिता ने प्रहलाद को सजा देने की ठान ली और प्रहलाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर दोनों को आग के हवाले कर दिया। होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी। लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। उसी समय से हम समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन मनाया जाता है। 
संपुर्ण भारत में पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन होली खेली जाती है। इन दिनों प्रकृति भी अपने सबसे अद्भुत रंग बिखेरती है। पतझड़ के बाद पेड़ों पर नई पत्तियां खिलती हैं, जो जीवन में नये उत्साह का संचार करती है।

हेलिकोत्सव की सबको शुभकामनाएँ!!!


No comments:

Post a Comment