Thursday, February 23, 2017

महाशिवरात्री व्रत - Hindi



महाशिवरात्री


फाल्गुन में आनेवाली रात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहा जाता है। तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्योहार महाशिवरात्रि है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर एवं मां पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था और इसी दिन प्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था

क्यों मनाते हैं शिवरात्री?

श्री शिवमहापुराण के अनुसार जब भगवान नारायण व ब्रह्मा जी में वर्चस्व को लेकर युद्ध हुआ, तब उन दोनों के बीच में एक शिवलिंग प्रगट हुआ। लिंग का दर्शन कर दोनों ने विचार किया कि जो इस लिंग का प्रारम्भ या अन्त का दर्शन कर लेगा, वही पूजनीय होगा। यह सुनकर ब्रह्मा जी हंस स्वरूप में व नारायण शूकर स्वरूप में आकाश व पाताल को गमन किया। ब्रह्माजी जब आकाश की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने ऊपर से केतकी के फूल को आते हुए देख पूछा, कि क्या वह प्रारम्भ से आ रहा है?  तब केतकी के फूल ने कहा, कि वह तो मध्य भाग से हज़ारों वर्षों से गिरता चला आ रहा है। ब्रह्मा जी ने केतकी के फूल से नारायण के सामने झूठ बोलने को कहा, कि वह यह पुष्टि करे, कि ब्रह्मा जी ने इस लिंग का प्रारम्भ खोज लिया है। केतकी फूल को लेकर ब्रह्मा जी भगवान नारायण के पास आए व फूल द्वारा झूठी पुष्टि भी करवाई। नारायण जी ने इस पर ब्रह्मा जी का पूजन किया, उसी समय उस लिंग से भगवान शिव ने प्रगट होकर क्रोध में भैरव प्रगट कर उसे आज्ञा देकर ब्रह्मा के पांच मुखों में से, जिस मुख ने झूठ बोला उसका छेदन करवा दिया। अन्त में नारायण जी स्तुति पर प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ब्रह्मा को अभय दान दिया। जिस दिन यह कार्य हुआ, वह दिन शिवरात्रि के रूप में भगवान शिव की आज्ञानुसार मनाया जाता है।

महाशिवरात्री व्रत की सामग्री

उपवास की पूजन सामग्री में जिन वस्तुओं को प्रयोग किया जाता हैं, उसमें  जल, गंगा जल, गाय का दूध (कच्चा), दही, फूल (कमल, कनेर, आक, शंखपुष्प), फूल माला, बेल पत्र, मधु, शक्कर, घी, कपूर, रुइ की बत्ती, प्लेट, कपड़ा, यज्ञोपवीत, सुपारी, इलायची, लौंग, पान का पत्ता, सफेद चंदन, धूप, दिया, धतुरा, भांग, जल पात्र (लोटा), चम्मच, नैवेद्य (अल-अलग प्रहरके लिये अलग-अलग नैवेद्य- पकवान, खीर, पुआ, उड़द, मूँग, सप्तधान्य), फल (श्रीफल, नारियल, बिजौरा नीम्बू, अनार, केला), अक्षत, तिल, जौ आदि.

महाशिवरात्री व्रत की विधि

महाशिवरात्री व्रत को रखने वालों को उपवास के पूरे दिन, भगवान भोलेनाथ का ध्यान करना चाहिए प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है ईशान दिशा की ओर मुख कर शिव का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहिएइस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है प्रत्येक पहर की पूजा में "ॐ नम: शिवाय" का जाप करते रहना चाहिए अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है


दिव्य मंत्र  :  'ॐ नमः शिवाय'


शिव और मंत्र का संबंध अनादिकाल से चला आ रहा है। संसार सागर अनादिकाल से चला आ रहा है, उसी प्रकार संसार से छ़ुडाने वाले भगवान शिव भी अनादिकाल से ही नित्य विराजमान हैं। शिव पुराण संहिता में कहा है कि सर्वज्ञ शिव ने संपूर्ण देहधारियों के सारे मनोरथों की सिद्धि के लिए इस 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का प्रतिपादन किया है। यह आदि षडाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' संपूर्ण विद्याओं का बीज है। जैसे वट बीज में महान वृक्ष छिपा हुआ है, उसी प्रकार अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी यह मंत्र महान अर्थ से परिपूर्ण है।   

महाशिवरात्रि व्रत कथा

लोकप्रचलित शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किए गए व्रत का भी फल दे देते हैं। पर वास्तव में महादेव शिकारी की दया भाव से प्रसन्न हुए। अपने परिवार के कष्ट का ध्यान होते हुए भी शिकारी ने मृग परिवार को जाने दिया। यह करुणा ही वस्तुत: उस शिकारी को उन पण्डित एवं पूजारियों से उत्कृष्ट बना देती है जो कि सिर्फ रात्रि जागरण, उपवास एव दूध, दही, एवं बेल-पत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते हैं। इस कथा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कथा में 'अनजाने में हुए पूजन' पर विशेष बल दिया गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव किसी भी प्रकार से किए गए पूजन  को स्वीकार कर लेते हैं अथवा भोलेनाथ जाने या अनजाने में हुए पूजन में भेद नहीं कर सकते हैं। वास्तव में वह शिकारी शिव पूजन नहीं कर रहा था। इसका अर्थ यह भी हुआ कि वह किसी तरह के किसी फल की कामना भी नहीं कर रहा था। उसने मृग परिवार को समय एवं जीवन दान दिया जो कि शिव पूजन के समान है। शिव का अर्थ ही कल्याण होता है। उन निरीह प्राणियों का कल्याण करने के कारण ही वह शिव तत्व को जान पाया तथा उसका शिव से साक्षात्कार हुआ। परोपकार करने के लिए महाशिवरात्रि का दिवस होना भी आवश्यक नहीं है। पुराण में चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है।मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा महाशिवरात्रि। पुराण वर्णित अंतिम शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि। वस्तुत: प्रत्येक रात्रि ही 'शिवरात्रि' है अगर हम उन परम कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें, वही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।

।। हर हर महादेव।।